Sunday 16 September 2018

जॉन एलिया 1

ग़ुस्सा भी है तहज़ीब-ए-तआल्लुक़ का तलबगार 
हम चुप हैं भरे बैठे हैं गुस्सा न करेंगे

कल रात बहुत ग़ौर किया है सो हम ए "जॉन" 
तय कर के उठे हैं के तमन्ना न करेंगे

Thursday 5 November 2015

केन्डी क्रश

 फेसबुकिये दोस्तों के इतने रिक्वेस्ट पर आखिरकार हमने भी केन्डी क्रश सागा स्टार्ट कर दिया
अब चाहे तो इसकी सजा जो हो ।अब मेरी तरफ से भी रिक्वेस्ट जा सकता है।

लाइफ के लिए नहीं बदला भी एक चीज़ है हम ही क्यों
बात ये भी है मुझे रिक्वेस्ट भेजने वालो को मैंने इतनी गाली
दी की मेरे गाली का स्टॉक कम हो गया । अब स्टॉक मेंटेन के
जरुरी है मुझे भी कही से लेनी होगी ।

अब जो लोग इससे अभी भी दूर है उनको मुफ़्त का ज्ञान
देना तो बनता है ।

आप भी जल्दी से इनस्टॉल कर ही लीजिए वरना कभी किये तो
पछतायेंगे की अब तक जिंदगी यूँ ही बर्बाद की कम से कम
80-90 लेवल पर होते ।


Thursday 20 November 2014

बेरुखी पर शायरी

उसकी बेरुखी पर जी चाहता है ,
चार शायरी हम भी पेल दे ग़ालिब !

अर्ज़ है

उसकी बेरुखी पर जी चाहता है ,
चार शायरी हम भी पेल दे ग़ालिब !

फिर सोचता हूँ जाने दो क्यों बिलावजह खोपड़ी खपाए !!!!

मोर्निग वाक

मोर्निग वाक में स्वक्ष हवा मिलती है या नहीं ये तो पता नहीं
सबेरे सबेरे नहाई धोयी लडकियों को देख कर मन स्वक्ष जरुर हो जाता है

"दुनिया के पतियो, एक हो जाओ।''

कुछ हास्यरस का लेख समझकर मेरे इस मार्मिक निबंध को भी हंसी में दरगुज़र करना चाहें,पर मैं एकदम गंभीर भाव से कहता हूं कि ऐसा करना मेरे साथ नहीं, मेरी महान पति-बिरादरी के साथ भी अन्याय का कारण होगा।
सबकी सुनवाई है, पति गरीब की नहीं।देखिए, मालिक के मुकाबले में आज मजदूर को शह दी जाती है, सवर्ण के मुकाबले में अवर्ण तरज़ीह पाता है और गोरों के मुकाबले दुनिया की सहानुभूति कालों के पक्ष में तो हो सकती है, लेकिन पत्नी के मुकाबले में कोई भी निष्पक्ष न्यायाधीश बेचारे पति की हालत पर विचार करने को तैयार नहीं है।
घर में पत्नी के आते ही एक ओर मां, बहन और भाभी की तरफ से खुलेआम जोरू का गुलाम कहना आरंभ कर दिया है। पुरुषो को यह तसल्ली भी नहीं कि कम-से-कम घरवालों की इस घोषणा से श्रीमतीजी को तो प्रसन्नता होगी ही। उलटा उनका आरोप यह होता है कि हम मां, बहनों और भावजों के सामने भीगी बिल्ली बन जाते है ! मां कहती है कि लड़का हाथ से निकल गया, बहन कहती है भाभी ने भाई की चोटी कतर ली।लेकिन पत्नी का कहना होता है कि तुम दूध पीते बच्चे तो नहीं, जो अभी भी तुम्हें मां के आंचल की ओट चाहिए।
पतियों के जुल्म के दिन तो हवा हुए। अगर हमें मानवता की रक्षा करनी है तो पहले सब काम छोड़कर पत्नियों के जुल्मों से असहाय पतियों की रक्षा करनी होगी।आप न जाइए यू.एन.ओ., न बैठाइए जांच कमीशन, न कीजिए पंच फैसला, खुद ही अपनी-अपनी अक्ल पर थोड़ा ज़ोर डालकर सहानुभूति से इस मसले पर विचार कीजिए, तो मेरी बात को सच पाइएगा।
तनख्वाह लाकर सीधे पहले घर में देनी है,
धोबी, कैंटीन और रेस्तरां के बिल सब वाहियात हैं।
रात को नौ बजे सोने और सुबह छः बजे उठने की मुझे सख्त ताकीद होती है।
ज्यादा चाय पीने, देर से घर लौटने और कभी सिनेमा-थियेटर का ज़िंक्र करने पर तो खास तौर की सजाएं निश्चित होती है !
किस-किस प्रकार के और किन-किन लोगों से दोस्ती रखनी है, कैसे-कैसे लोगों के घर जाना है और किन-किन को घर बुलाना है।
अब ज़िंदगी किसकी खराब हुई है, इसका फैसला आप खुद करें। खुदा के लिए इस प्रश्न को वर्ग-संघर्ष का, बिरादरी का या अपने मान-अपमान अथवा स्वार्थों और हितों का न बना दें। यह भी सोचें कि पति भी आख़िर मनुष्य है। भगवान ने उसे भी दिल और दिमाग दिया है। इस नई रोशनी ने उसमें भी तमन्नाएं भर दी हैं। वह भी दूसरों की तरह न्याय का हकदार है।
अगर आपने घर में ही इस मसले को हल नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब पति लोग पत्नियों के दमन के विरुद्ध बगावत कर देंगे और पत्नियों की इस मीठी नादिरशाही को ख़त्म करने के लिए उनका नारा होगा, "दुनिया के पतियो, एक हो जाओ।''

पंखा चलाना चाहिए या नहीं ।

अक्टूबर नवम्बर के महीने में अपनी स्थिति पहले प्यार में धोखा खाए लोग जैसी हो गयी है ।
रात कश्मकश में कट जाती है पंखा चलाना चाहिए या नहीं ।
कल तक जिस पंखे से हवा न दे पाने की शिकायत थी वो भी सबसे कम में हवा तेज़ दे रही है ।
और पंखा बंद कर दो तो मच्छर कटते है । कम्बल तान लो गर्मी लगती है । गर्मी से बचने के लिए पैर बहार निकालो तो फिर मच्छर टूट पड़ते है ।
पूरी रात छुपन छुपाई खेलने में निकल जाती है ।

कुछ समझ में नहीं आता कोई बस इतना बता दे इस मौसम में पंखा चलाना चाहिए या नहीं ।

हनीमून

हनीमून के बारे में सोच रहा था , हनीमून से मेरा परिचय बहुत बचपन में 3-4 साल की उम्र में ही हो गया था जब चाचा जी की शादी हुई वो हनीमून मानाने जा रहे थे तो मैं भी जिद पर अड़ गया की मैं भी जाउगा हनीमून मंनाने !
माँ ने प्यार से समझया की अच्छे बच्चे हनीमून नहीं मानते ! और फिर मुझे बहलाने हनुमान जी के मंदिर ले जाया गया , तभी से मैं भी जनता हूँ की हनुमान जी हनीमून विरोधी है !
हलाकि उनके भक्त और पुजारी के बीच अब इस मामले में मतभेद नज़र आता है इसकी वजह महिला भक्त है जब महिला भक्त हनुमान जी के दर्शन को आती है इस बीच पुजारी उनके दर्शन करने में लग जाते है !

खैर बात हनीमून की हो रही थी तो ये संबेधानिक रूप से शादी के बाद मनाया जाता है ! और अगर शादी एक जीवन का अंत है तो हनीमून की जगह कश्मीर से बेहतर क्या होगी क्युकी कश्मीर के लिए किसी ने कहा है "अगर धरती पर अगर कही जन्नत है तो यहीं है"

कश्मीर में आतंकवाद का एक कारण ये भी हो सकता है की सब लोग वहां हनीमून मानाने पहुच जाते है ! वहां के लोगो को लगता होगा की सब ने इसे हनीमून का अड्डा बना दिया है जिससे धरती नापाक हो रही है और इसी चक्कर में कश्मीर को पाक बनाना चाहते हो !
वैसे आतकवाद और शादी में कोई बहुत ज्यादा अंतर भी नहीं होता ! शादी के कुछ दिन बात से धर में भी विष्फोट हमले दह्सतगर्दी शुरु हो ही जानी है फिर तो घर का माहोल भी कश्मीर सा हो जाना है तब मना लो हनीमून !