कुछ
हास्यरस का लेख समझकर मेरे इस मार्मिक निबंध को भी हंसी में दरगुज़र करना
चाहें,पर मैं एकदम गंभीर भाव से कहता हूं कि ऐसा करना मेरे साथ नहीं, मेरी
महान पति-बिरादरी के साथ भी अन्याय का कारण होगा।
सबकी सुनवाई है, पति
गरीब की नहीं।देखिए, मालिक के मुकाबले में आज मजदूर को शह दी जाती है,
सवर्ण के मुकाबले में अवर्ण तरज़ीह पाता है और गोरों के मुकाबले दुनिया की
सहानुभूति कालों के पक्ष में तो हो सकती है, लेकिन पत्नी के मुकाबले में कोई भी निष्पक्ष न्यायाधीश बेचारे पति की हालत पर विचार करने को तैयार नहीं है।
घर में पत्नी के आते ही एक ओर मां, बहन और भाभी की तरफ से खुलेआम जोरू का
गुलाम कहना आरंभ कर दिया है। पुरुषो को यह तसल्ली भी नहीं कि कम-से-कम
घरवालों की इस घोषणा से श्रीमतीजी को तो प्रसन्नता होगी ही। उलटा उनका आरोप
यह होता है कि हम मां, बहनों और भावजों के सामने भीगी बिल्ली बन जाते है !
मां कहती है कि लड़का हाथ से निकल गया, बहन कहती है भाभी ने भाई की चोटी
कतर ली।लेकिन पत्नी का कहना होता है कि तुम दूध पीते बच्चे तो नहीं, जो
अभी भी तुम्हें मां के आंचल की ओट चाहिए।
पतियों के जुल्म के दिन तो
हवा हुए। अगर हमें मानवता की रक्षा करनी है तो पहले सब काम छोड़कर पत्नियों
के जुल्मों से असहाय पतियों की रक्षा करनी होगी।आप न जाइए यू.एन.ओ., न
बैठाइए जांच कमीशन, न कीजिए पंच फैसला, खुद ही अपनी-अपनी अक्ल पर थोड़ा
ज़ोर डालकर सहानुभूति से इस मसले पर विचार कीजिए, तो मेरी बात को सच
पाइएगा।
तनख्वाह लाकर सीधे पहले घर में देनी है,
धोबी, कैंटीन और रेस्तरां के बिल सब वाहियात हैं।
रात को नौ बजे सोने और सुबह छः बजे उठने की मुझे सख्त ताकीद होती है।
ज्यादा चाय पीने, देर से घर लौटने और कभी सिनेमा-थियेटर का ज़िंक्र करने पर तो खास तौर की सजाएं निश्चित होती है !
किस-किस प्रकार के और किन-किन लोगों से दोस्ती रखनी है, कैसे-कैसे लोगों के घर जाना है और किन-किन को घर बुलाना है।
अब ज़िंदगी किसकी खराब हुई है, इसका फैसला आप खुद करें। खुदा के लिए इस
प्रश्न को वर्ग-संघर्ष का, बिरादरी का या अपने मान-अपमान अथवा स्वार्थों और
हितों का न बना दें। यह भी सोचें कि पति भी आख़िर मनुष्य है। भगवान ने उसे
भी दिल और दिमाग दिया है। इस नई रोशनी ने उसमें भी तमन्नाएं भर दी हैं। वह
भी दूसरों की तरह न्याय का हकदार है।
अगर आपने घर में ही इस मसले को
हल नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब पति लोग पत्नियों के दमन के विरुद्ध
बगावत कर देंगे और पत्नियों की इस मीठी नादिरशाही को ख़त्म करने के लिए
उनका नारा होगा, "दुनिया के पतियो, एक हो जाओ।''